महात्मा गांधी पर निबंध 400 शब्दों में – महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1879 को भारत के गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। उन्होंने भारत को आजाद कराने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी। तो आईये अब जानते है महात्मा गांधी पर निबंध 400 शब्दों में (Mahatma Gandh Essay In 400 Words) –
महात्मा गांधी पर निबंध 400 शब्दों में हिंदी में (Mahatma Gandhi Par Nibandh 400 Shabdon Me)
मोहनदास करमचंद गांधी एक बहुत महान व्यक्ति थे, जिनकी महानता ने न केवल भारत के लोगों को बल्कि विदेशों के लोगों को भी प्रेरित किया। अगर उनके जन्म की बात करें तो राष्ट्रपिता का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वे अपने पिता करमचंद गांधी और माता पुतलीबाई गांधी की चौथी और आखिरी संतान थे।
गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा – गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्मस्थान पोरबंदर में हुई थी। महात्मा गांधी एक बहुत ही साधारण छात्र थे और वे बहुत कम बोलते थे। उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा मुंबई विश्वविद्यालय से की, फिर बाद में वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश चले गए। वैसे तो गांधीजी का सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन वैष्णव परिवार से ताल्लुक रखने के कारण उन्हें चीर-फाड़ करने की अनुमति नहीं थी। इसलिए उन्होंने कानून की शिक्षा पूरी की।
गांधीजी का विवाह – जब गांधीजी केवल 13 वर्ष के थे, तब उनका विवाह कस्तूरबा देवी से हुआ, जो पोरबंदर के एक व्यापारी की बेटी थीं। गांधी जी अपनी शादी के समय स्कूल में पढ़ रहे थे।
राजनीति में गांधी जी का प्रवेश – जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे, तब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर थी। 1915 की बात है जब गांधी जी भारत लौटे, तब कांग्रेस पार्टी के सदस्य श्री गोपाल कृष्ण गोखले ने बापू को कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए कहा। उसके बाद गांधी जी ने देश की बागडोर अपने हाथों में ली और पूरे भारत का भ्रमण किया, और एक नया इतिहास शुरू किया। इस दौरान जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया, तो गांधी जी ने उसका बहुत ही बहादुरी से सामना किया। इस तरह लोगों को काफी प्रोत्साहन मिला और जब गांधी जी ने नमक आंदोलन और दांडी मार्च शुरू किया, तो इससे अंग्रेज बुरी तरह डर गए।
महात्मा गांधी जी ने पूरे देश में लोगों को स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। आपको बता दें कि गांधी जी द्वारा किए गए सभी आंदोलन अहिंसा से कोसों दूर थे। लेकिन फिर भी नमक आंदोलन के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। लेकिन गांधी जी ने अपना संघर्ष जारी रखा और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ाद करवा लिया।
गांधी जी की मृत्यु – देश के बापू महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन के बगीचे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। नाथूराम विनायक गोडसे ने बापू के सीने में तीन गोलियां दागी थीं। मरते समय उन्होंने ‘हे राम’ कहा था। इस तरह राष्ट्रपिता 78 साल की उम्र में इस दुनिया से चले गए। लेकिन आज भी लोग उनके आदर्शों और उनकी बातों का बहुत सम्मान करते हैं।
महात्मा गांधी पर निबंध 400 शब्दों में हिंदी में (Essay On Mahatma Gandhi In 400 Words)
महात्मा गांधी का भारत की स्वतंत्रता के स्वप्न को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है। लोग उन्हें आदरपूर्वक ‘बापू’ कहकर पुकारते थे।
उनके परिवार वालों द्वारा उनका नाम मोहनदास करमचंद गांधी रखा गया था। मोहनदास गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के राजकोट जिले के पोरबंदर नामक एक गांव में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी राजकोट राज्य के दीवान थे और माता पुतलीबाई एक कुशल गृहिणी और धार्मिक महिला थीं।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर के एक स्कूल में प्राप्त की। बाद में उन्होंने भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में अध्ययन किया, फिर उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजा गया। 1891 में उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की और मुंबई आकर वकालत करने लगे।
1893 में वे एक व्यापारी के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहां उन्होंने भारतीय मूल के लोगों के प्रति श्वेत लोगों के दुर्व्यवहार को देखा, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने उनके विरुद्ध ‘सत्याग्रह आंदोलन’ आरंभ किया। उनके आंदोलन ने वहां अंग्रेजों के अत्याचारों को काफी हद तक कम किया। दक्षिण अफ्रीका में बिताया गया समय उनके राजनीतिक जीवन का आधार कहा जा सकता है।
1914 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधीजी ने भारतीयों के प्रति अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचार की ओर ध्यान दिया। उन्होंने अहमदाबाद में मिल मजदूरों के लिए, फिर चंपारण में किसानों के लिए आंदोलन चलाया और उन्हें उनके अधिकार दिलाए। बाद में उन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का प्रयास आरंभ किया। पूरा देश इस ‘असहयोग आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हो गया और अंततः अंग्रेजों को 15 अगस्त 1947 को हमेशा के लिए भारत छोड़ना पड़ा।
गांधीजी हमेशा सच बोलते थे। इस कारण वे वकालत के पेशे में ज्यादा सफल नहीं रहे। उन्हें भारतीय संस्कृति से बहुत लगाव था। उन्होंने ‘स्वदेशी अपनाओ’ का नारा दिया। गांधीजी भारत में बने खादी के कपड़े पहनते थे और दूसरों को विदेशी कपड़े पहनने से भी रोकते थे। वे अहिंसा के परम भक्त थे। अपने जीवन के अंतिम क्षण तक उन्होंने ‘बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत बोलो’ के सिद्धांत का पालन किया।
गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा, सत्य, असहयोग और एकता को अपना हथियार बनाया। उनके अद्वितीय गुणों ने उन्हें एक महान व्यक्ति और पूजनीय बना दिया। 30 जनवरी, 1948 को उनकी हत्या कर दी गई। हर भारतीय हमेशा उनका ऋणी रहेगा।