प्रदोष व्रत किस महीने से शुरू करना चाहिए – यह व्रत यानी प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है, इसलिए इसे त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। प्रदोष व्रत एक महीने दो बार आता है, यानी एक महीने दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं, एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में।
प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान प्रचलित है। मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। वही अगर किसी को संतान प्राप्ति की इच्छा है तो उसके लिए यह व्रत बेहद फलदायी माना जाता है। तो आइये जानते है –
प्रदोष व्रत किस महीने से शुरू करना चाहिए इन हिंदी / प्रदोष व्रत कब से शुरू करें
प्रदोष व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू किया जा सकता है। वही श्रावण व कार्तिक महीने में प्रदोष व्रत शुरू करना सबसे अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। जब भी आप प्रदोष व्रत शुरू करे तो विधिवत् पूजन-अर्चन एवं संकल्प लेकर शुरू करना चाहिए।
प्रदोष व्रत का उद्यापन किस महीने में करना चाहिए इन हिंदी
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है, इसलिए प्रदोष व्रत का उद्यापन भी महीने की त्रयोदशी तिथि को करना चाहिए। किसी भी महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का उद्यापन किया जा सकता है।
प्रदोष व्रत में क्या खाया जाता है इन हिंदी
भगवान शिव को प्रदोष बहुत प्रिय होता है, इसलिए भोलेनाथ जी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष के नियम मुताबिक खाने का चयन करना चाहिए। प्रदोष व्रत में फलाहार सेवन को विशेष महत्व है, इस दिन आप फलाहार भी कर सकते है। ज्योतिषियों की माने तो प्रदोष व्रत अगर निर्जला रखा जाए तो यह सबसे उत्तम साबित होता है।
व्रत करने वाले को व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निपट जाने के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। इसके बाद भगवान भोलेनाथ की उपासना करें। व्रत के दौरान आप दूध पि सकते है। अब आपको पूरे दिन प्रदोष व्रत का पालन करते हुए शिवशंकर और माता पार्वती की विधि-विधान से प्रदोष काल में पुनः पूजा करनी चाहिए।
कहा जाता है की प्रदोष काल में पूजन करने से पहले एक बार फिर से स्नान कर लेना चाहिए, और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
अगर आपको शरीर में कमजोरी लगे या रोगी लोग भी प्रदोष व्रत के दौरान फलाहार कर सकते हैं, लेकिन बार-बार मुंह झूठा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का कोई लाभ नहीं मिलता है, क्योकि व्रत व्रत भंग हो जाता है।
मानयता अनुसार प्रदोष काल में उपवास के समय सिर्फ हरे मूंग का ही सेवन करना सही है, क्योंकि हरा मूंग एक पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत करता है।
प्रदोष व्रत में क्या नहीं खाया जाता है इन हिंदी
अगर बात करे की प्रदोष व्रत में क्या नहीं खाया जाता है तो आपको बता दे की प्रदोष व्रत में कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए की जिससे आप व्रत तो टूटे ही साथ ही शिव शम्भू भी आपसे क्रोधित हो जाए।
प्रदोष काल में वह काम बिलकुल भी न करे, जिसकी मनाही की गयी है। प्रदोष व्रत में खाने को लेकर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। प्रदोष काल में भोजन भगवान शिव की पूजा के बाद ही करना चाहिए।
इस दौरान अन्न, चावल, लाल मिर्च और सादा नमक आदि खाने से बचना चाहिए। वैसे तो इस दिन आपको कुछ भी खाने से बचकर रहना चाहिए, लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर या रोगी व्यक्ति फलाहार का सेवन कर सकता है।
प्रदोष व्रत विधि इन हिंदी
प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्मा बेला में अपनी आँखे खोल लेनी चाहिए, दिन की शुरुआत भगवान शिव और माता की पूजा – ध्यान से करनी चाहिए। गंगाजल मिले पानी से स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद आचमन कर स्वयं को शुद्ध कर ले और व्रत संकल्प करे।
अब इसके बाद भगवान शिव को धतूरा, फल, फूल, भांग, बेल पत्र, नैवेद्य, मदार के पत्ते आदि भक्ति भाव से अर्पित करे। इसके बाद विधि विधानपूर्वक भगवान शिव व मां पार्वती की पूजा-अर्चना करें। पूजा के समय शिव चालीसा के साथ महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना बहुत ही शुभ फलदायी होता है। आखिरी में भगवान भोलेनाथ की आरती कर भोग लगाकर लोगों में प्रसाद का वितरण कर देना चाहिए।
प्रदोष व्रत में नमक खाना चाहिए कि नहीं इन हिंदी
प्रदोष व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है, इसलिए भूलकर भी प्रदोष व्रत में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा प्रदोष व्रत के दिन भूल से भी मांस-मदिरा, तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मसूर, उड़द आदि के भी सेवन से बचना चाहिए।
FAQs
प्रदोष का व्रत कब से उठाना चाहिए?
प्रदोष व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू किया जा सकता है।
प्रदोष व्रत की शुरुआत कैसे करें?
प्रदोष व्रत की शुरुआत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू संकल्प लेकर करना चाहिए।