मृत्यु सूतक में व्रत करना चाहिए या नहीं – धर्म शास्त्रों में सभी संस्कारों के लिए कुछ खास नियम बनाए गए हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक, नामकरण से लेकर अन्नप्राशन तक ऐसे बहुत से नियम हैं जो मानव जीवन के लिए जरूरी माने गए हैं। माना जाता है कि अगर इन नियमों का सही तरीके से पालन किया जाए तो घर में सदैव खुशियां रहती हैं।
इसी तरह पूजा-पाठ को लेकर भी कई खास नियम हैं और इतना ही नहीं कुछ खास मौकों पर पूजा-पाठ भी वर्जित होता है। ऐसी ही एक मान्यता है परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु से सम्बंधित है। घर में किसी सदस्य की मृत्यु के दौरान सूतक लग जाता है, और इस दौरान कई नियमो का पालन करना होता है। तो आइये जानते है मृत्यु सूतक में व्रत करना चाहिए या नहीं, मृत्यु सूतक में क्या नहीं करना चाहिए –
मृत्यु सूतक में व्रत करना चाहिए या नहीं (Mrityu Sutak Me Vrat Karna Chahiye Ya Nahi)
नहीं, मृत्यु सूतक में व्रत नहीं करना चाहिए। अगर परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पूजा-पाठ वर्जित हो जाता है। परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद कुछ दिनों तक घर में पूजा-पाठ नहीं की जाती है, और न ही व्रत आदि रखे जाते है।
दरअसल, सूतक काल मृत्यु के बाद के 12 दिनों की अवधि होती है हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद के 12 दिनों की अवधि को सूतक काल माना जाता है। कहा जाता है कि इस समय अवधि के दौरान मरने वाला व्यक्ति आत्मा के रूप में आसपास मौजूद रहता है। सूतक काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है और कोई भी पूजा-पाठ भी नहीं करने की सलाह दी जाती है।
मान्यता है कि इस दौरान परिवार के सभी लोगों को मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और गरुण पुराण का पाठ करना चाहिए। परंपरागत रूप से सूतक काल की अवधि सभी जातियों के लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती है, यह अवधि 10 से 30 दिनों तक होती है। इसलिए हमारी परंपरा के अनुसार उस निश्चित अवधि के दौरान घर में भगवान की पूजा नहीं की जाती है।
सूतक काल का पालन करना क्यों जरूरी है?
ऐसा माना गया है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात फैमिली के सदस्यों द्वारा सूतक काल के नियमों का पालन नहीं किया जाता हैं, तो मृतक की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जब किसी की मृत्यु हो जाती है, तो परिवार को बारह दिनों तक सूतक का पालन करना चाहिए। इस दौरान घर में पूजा-पाठ करने के बजाय पंडित की मौजूदगी में गरुड़ पुराण का पाठ करना चाहिए और सात्विक धर्म का पालन करना चाहिए।
कुछ संस्कृतियों या धार्मिक परंपराओं में, यह माना जाता है कि शोक की अवधि के दौरान पूजा या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करना उचित नहीं हो सकता है।
इसके कुछ विशेष कारण हो सकते हैं जैसे कि लोगों का मानना है कि शोक की अवधि के दौरान, पूजा, उत्सव या अन्य गतिविधियों में शामिल होने के बजाय शोक मनाने और मृतक की स्मृति का सम्मान करने पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। इसे चिंतन का समय माना जाता है और शोक और पूजा करना इसके विपरीत भी माना जा सकता है
परिवार में मृत्यु के कारण आध्यात्मिक अशुद्धता का वास
कुछ धार्मिक मान्यताओं की माने तो, मृत्यु और उसके बाद के शोक की समयावधि को आध्यात्मिक अशुद्धता का समय माना गया है। इसलिए इस दौरान यह माना जाता है कि परिवार आध्यात्मिक रूप से दूषित हो जाता है और पूजा करना या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना अनुचित है।
किसी की मृत्यु के तुरंत उपरान्त की समयावधि अक्सर भावनात्मक रूप से आवेशित होती है, साथ ही परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान दुःख से उभरने और एक-दूसरे की प्रदान करने पर केंद्रित हो सकता है, जिसके कारण आप पूजा पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। यही कारण है कि इस अवधि के दौरान पूजा न करने की सलाह दी जाती है।
परिवार में मृत्यु के बाद पूजा पाठ के नियम
ऐसा माना जाता है कि जब परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो भगवान की पूजा करने की बजाय पितरों की पूजा को प्राथमिकता देने का समय होता है। हिंदू धर्म में इस दौरान तर्पण आदि करने का रिवाज है और इससे पितरों को प्रसन्नता मिलती है। कुछ हिंदू परंपराओं के अनुसार, शोक की अवधि के दौरान सामान्य पूजा करने से पितृ पूजा में बाधा आ सकती है, इसलिए इस अवधि के दौरान भगवान की पूजा न करने की सलाह दी जाती है।
मृत्यु सूतक में क्या नहीं करना चाहिए (Mrityu Sutak Me Kya Nahi Karna Chahiye)
यदि सूतक काल में कोई त्योहार आता है तो उस त्योहार को न मनाएं क्योंकि इन दिनों कोई भी शुभ कार्य या उत्सव वर्जित होता है। सूतक का यह समय अलग रहने और शोक मनाने का होता है, इसलिए इस दौरान घर में कोई भी शुभ कार्य न करें, सादगी से रहें और इस समय किसी भी तरह के जश्न या पार्टी का आयोजन न करें। ऐसे में सूतक समय के नियमों को समझें और उनका सही तरीके से पालन करें।