Ras Ke Kitne Ang Hote Hain – हिंदी साहित्य की विरासत बहुत बड़ी है। हिंदी साहित्य में कई साहित्यकारों ने भाग लिया है और विभिन्न विषयों पर प्रकाश डाला है। साहित्यकारों ने विभिन्न कविताओं, रचनाओं, नाटकों और पाठकों के माध्यम से विभिन्न भावों को जगाने की कोशिश की है।
आज के इस लेख में हम आपको रस क्या है, प्रकार, परिभाषा और रस के कितने अंग होते हैं आदि के बारे में जानकारी देने वाले है। तो आइये जानते है रस के कितने अंग होते हैं (Ras Ke Kitne Ang Hote Hai) –
रस क्या है, रस की परिभाषा क्या है (Ras Ki Paribhasha Kya Hai In Hindi)
काव्य को पढ़ने या सुनने से जो आनंद मिलता है उसे रस कहते हैं। रस का शाब्दिक अर्थ है “आनंद”।
रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है, जिसके लिए संस्कृत में कहा गया है कि “रसात्मकं वाक्यं काव्यम्” यानी रस युक्त वाक्य काव्य है।
भरत मुनि द्वारा रस की परिभाषा – रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभव और संचारी भावों के संयोग से होती हैं।
रस के कितने अंग होते हैं इन हिंदी (Ras Ke Kitne Ang Hote Hain)
रस के चार अंग होते है, जो इस प्रकार है –
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
1) स्थायी भाव
स्थायी भाव वह है जो मन में स्थायी रूप से स्थापित हो, उसे किसी अन्य भाव द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता।
प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है। अर्थात् यदि रसों की कुल संख्या 9 है, तो स्थायी भावों की संख्या भी 9 होगी। मुख्य रूप से रसों की संख्या 9 मानी जाती है, जिसमें श्रृंगार रस (Shringar Rasa) को रसों का राजा माना जाता है।
भरत मुनि के मुताबिक रसों की संख्या 8 मानी गई, क्योकि शांत रस को उनके काव्य नाट्य शास्त्र में स्थान नहीं दिया गया। पर बाद में वात्सल्य और भागवत रस को हिंदी आचार्य ने मान्यता दी, जिससे रसों की संख्या 9 के बजाय 11 हो गई।
यदि रसों की संख्या 9 से 11 हो जाए तो स्थायी भावों की संख्या भी 9 से 11 हो जाएगी।
2) विभाव
काव्य में किसी वस्तु या विषय का वर्णन पढ़ने से जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभाव के दो प्रकार होते हैं – 1) आलम्बन विभाव और 2) उद्दीपन विभाव
(क) आलम्बन विभाव – जो बातें मन में स्थायी भाव जगाती हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं।
उदाहरण के लिए – नायक नायिका।
आलम्बन को दो भागों में बांटा गया है – आश्रयआलम्बन और विषयालंबन
आश्रयआलम्बन – जिसके मन में भाव जागृत होता है, उसे आश्रयआलम्बन कहते हैं।
विषयालंबन – जिसके कारण भाव जागृत होता है, उसे विषयालंबन कहते हैं।
उदाहरण – सुदामा की दयनीय स्थिति कृष्ण के मन में शोक की भावना जागृत करती है, तो कृष्ण को आश्रयालम्बन विभव तथा सुदामा को विषयालम्बन विभव कहा जाएगा।
(ख) उद्दीपन विभव – जो वस्तुएँ तथा परिस्थितियाँ भावनाओं को जागृत करती हैं, उन्हें उद्दीपन विभव कहते हैं।
उदाहरण – युद्ध के नगाड़े, दहाड़ना, चहचहाना, कोयल का गाना, नायक-नायिका आदि।
3) अनुभाव
मन के भाव को उत्पन्न करने वाली शारीरिक क्रियाओं को अनुभव कहते हैं। अथवा स्थायी भावना के उत्पन्न होने के पश्चात जो भावनाएँ या भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं।
उदाहरण – पसीने से भीग जाना, रोंगटे खड़े हो जाना, काँपना, डर जाना, स्तब्ध हो जाना।
अनुभाव के 8 प्रकार हैं – स्तंभ, स्वेद, रोमांच, भंग, कंप, विवर्णता, अश्रु और प्रलय।
अनुभाव के चार प्रकार हैं – कायिक, मानसिक, वाचिक, आहार्य
4) संचारी भाव
जो भाव स्थायी भाव के साथ मन में चलते / संचरण (आते-जाते) करते हैं और कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं, उन्हें संचारी भाव कहते हैं।
संचारी भावों की संख्या 33 है। ये मन में स्थायी रूप से नहीं रहते है, जो इस प्रकार है – हर्ष, विषाद, श्रास, ग्लानि, निर्वेद, धृति, मति, बिबोध, वितर्क, दीनता, निद्रा, श्रम, चिंता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, लज्जा, उग्रता, चपलता, स्वप्न, स्मृति, जड़ता, आवेग, आलस्य, मद, उन्माद, अवहितथा अपस्मार व्याधि मरण।
उदाहरण – नायक का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम देखकर नायिका के मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होना संचारी भाव है।
रस के प्रकार और स्थायी भाव (Types Of Ras In Hindi)
- श्रृंगार रस (स्थायी भाव – रति)
- हास्य रस (स्थायी भाव – हास)
- करुण रस (स्थायी भाव – शोक)
- वीर रस (स्थायी भाव – उत्साह)
- अद्भुत रस (स्थायी भाव – आश्चर्य, विस्मय)
- भयानक रस (स्थायी भाव – भय)
- रौद्र रस (स्थायी भाव – क्रोध)
- वीभत्स रस (स्थायी भाव – जुगुप्सा)
- शांत रस (स्थायी भाव – निर्वेद या निर्वृती)
- वात्सल्य रस (स्थायी भाव – रति)
- भक्ति रस (स्थायी भाव – अनुराग)
FAQs
रस के कितने अंग होते हैं?
रस के 4 अंग होते हैं – स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव संचारी भाव।
रसों का राजा कौन है?
श्रृंगार रस को रसों का राजा कहते है।