Shringar Ras Ka Udaharan Aur Paribhasha – कविता, कहानी, उपन्यास आदि पढ़ने या सुनने तथा नाटक देखने से जो आनंद मिलता है, या अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं। रस कई प्रकार के होते हैं। लेकिन यहाँ हम जानेंगे कि श्रृंगार रस की बात करने वाले है। आज के इस लेख में आप जानेगे की श्रृंगार रस क्या है, शृंगार रस की परिभाषा, और शृंगार रस का उदाहरण आदि।
श्रृंगार रस क्या है (Shringar Ras Kya Hai In Hindi)
शृंगार रस का स्थायी भाव रति है। जब रति नामक स्थायी भाव विभाव, अनुभव और संचारी भाव के संयोग से रस रूप में परिवर्तित हो जाता है तो उसे श्रृंगार रस कहते हैं। श्रृंगार रस को ‘रसराज’ भी कहा जाता है।
शृंगार रस की परिभाषा (Shringar Ras Ki Paribhasha In Hindi)
श्रृंगार रस में नायक-नायिका के मन में संस्कार के रूप में उपस्थित प्रेम या रति जब रस की अवस्था में पहुँच जाता है, तब उसे श्रृंगार रस कहते हैं। श्रृंगार रस को रसराज या रसपति भी कहते है।
शृंगार रस का उदाहरण (Shringar Ras Ka Udaharan In Hindi)
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई॥
श्रृंगार रस के उदाहरण अन्य (Shringar Ras Ke Udaharan) –
हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी।
सजल नयन पुलकाबलि ठाढ़ी।।
गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।
रे मन आज परीक्षा तेरी।
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी।
राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।
थके नयन रघुपति छबि देखें।
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।।
अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।
बचन न आव नयन भरि बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।
लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
एक पल, मेरे प्रिया के दृग पलक
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय संबन्ध था।।
महा मधुर रस प्रेम कौ प्रेमा।
पीवत ताहिं भूलि गये नेमा।।
तैसी सखी रहै दिन-राती।
हित ध्रुव’ जुगल-नेह मदमाती।।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै, भौंहनु हँसे, देन कै नटि जाय।
क्या पूजा, क्या अर्चन रे !
उस असीम का सुन्दर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे !
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे !
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन जलकण रे !
लोचन मग रामहि उर आनी।
दीन्हे पलक कपाट सयानी।।
जब सिय सखिन्ह प्रेमबस जानी।
कहि न सकहिं कछु मन सकुचानी।।
महाप्रेम गति सब तें न्यारी।
पिय जानै, कै प्रान-पियारी॥
उरझे मन सुरझत नहिं केहू।
जिहि अंग ढरत होत सुख तेहू॥
कौतुक प्रेम छिनहिं-छिन होई।
यह रस विरलो समुझै कोई॥
ज्यों-ज्यों रूपहिं देखत माई।
प्रेम-तृषा की ताप न जाई॥
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ।
सतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हा।
घार बोली स-दुःख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।
मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बूदें पड़ती थी घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भायी थी।
श्रृंगार रस के भेद / श्रृंगार रस के प्रकार (Shringar Ras Ke Prakar In Hindi)
- संयोग श्रृंगार
- वियोग श्रृंगार
1) संयोग श्रृंगार
जब नायक-नायिका के मिलन, आलिंगन, स्पर्श, वार्तालाप आदि का वर्णन किया जाता है, तब संयोग श्रृंगार रस होता है।
उदाहरण –
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,
सौंह करे भौंहन हंसे देन कहे नटि जाय!!
थके नयन रघुपति छवि देखे।
पलकन्हि हु परिहरि निमेखे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।
राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं ।
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।
2) वियोग श्रृंगार
जहाँ नायक-नायिका में प्रेम प्रबल हो पर मिलन न हो यानी जहाँ नायक-नायिका का वियोग वर्णित हो, तब वहाँ वियोग रस होता है।
उदाहरण –
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥
पुनि वियोग सिंगार हूँ दीन्हौं है समुझाइ।
ताही को इन चारि बिधि बरनत हैं कबिराइ॥
इक पूरुब अनुराग अरु दूजो मान विसेखि।
तीजो है परवास अरु चौथो करुना लेखि॥
इन काहू सेयो नहीं पाय सेयती नाम।
आजु भाल बनि चहत तुव कुच सिव सेयो बाम॥
बेलि चली बिटपन मिली चपला घन तन माँहि।
कोऊ नहि छिति गगन मैं तिया रही तजि नाँहि॥